Thursday, August 19, 2010

उपवन की मुस्कान

ये हरियाली,
गहराई तो -
घास के तिनके
पेड़ बन गए।
मिट्टी के कण कण गहराये,
पर्वत ऊंचे दीर्घ बन गये।
पत्ता-पत्ता सिमट गया,
हर डाली, हर शाखा में,
शाख- शाख मिल उठी जहाँ,
तो हरे- भरे सब वृक्ष बन गये।
वृक्षों की अवलि को देखो,
लघु, दीर्घ सब एक हो गईं,
एक बना जो रूप सुनहरा-
उपवन की मुस्कान हो गए।
मिल जुल कर देखें,
फिर कर लें-
कठिन, सहज सब काम हो गये।
एक बने, बल पाया हमने,
जुड़ गणतंत्र महान हो गये।
अब फिर समय गया हम पर
बलिदानों के बीज हो गये।
देश एकता रास हो जाये,
ऐसे यज्ञ अब धार्य हो गये।

Monday, August 16, 2010

उल्लास

जीवन में सितारे बहुत छिटके,
धुंधले, झिलमिलाते, टिमटिमाते,
मध्य उनके आकाश की परतें-
शून्य राह दिखातीं,
जिन पर चल कर जाने की चाह-
तारों की चमक पा जाने की राह-
जहां कुछ भी नहीं सिमटा,
सब कुछ हो बिखरा-
हवाएं भी सब हल्की,
जीवन की साध्य मूल पर,
साहस, कल्पना, शौर्य,
सब मिल बंधाती हैं आस-
तारे हैं शून्य गगन के बहुत-
हम तो धरती के,
हैं धरती के,
तारे विश्वास औ सफलता के
लाएंगे चुन चुन-
अपने आंगन में बिखराएंगे-
झिलमिलाती, टिमटिमाती,
जगमग करतीं
उल्लास की खुशियां।

निरुपण

लॉकरों में पड़ा धन
समान है गड़ा धन
काम आता नहीं किसी के
न अपने, न दूसरे के,
गरीब हैं लाखों इस देश के-
दे दो किसानों को,
सिपाहियों को,
शहीदों की विधवाओं को,
खुलवा दो रोजगार साधन
गड़ा धन, पड़ा धन
स्वार्थ भरा, अचल धन
कर दो चलायमान-
जी सके हर प्राण,
मिले बहुतों को साधन
जी उठें, खुशी से,
अभावग्रस्त, हजारों मन ।

उत्थान

देना है
भारत को नैतिक उत्थान,
तो कर दो-
संस्कृत को राष्ट्रभाषा घोषित,
पढ़ाओ हिन्दी को,
अनिवार्यता के साथ
उच्चतम शिक्षा तक
कर दो-
गणित अनिवार्य उच्च शिक्षा तक
दे दो ऐच्छिकता,
शिक्षा में अंग्रेजी को
अरे !
कर के तो देखो
सम्पूर्ण विश्व देखेगा,
भारतीयता की चमक,
दुनिया फिर होगी झंकृत
अरे, ऐसा क्या हो गया
चमक गया सूरज
दुनियाँ में भारत का ।।
पा लेगा गौरवमय
विश्वगुरु पद।

Tuesday, September 23, 2008

पगडण्डी

मैंने कभी सपने नहीं देखे
ऊंचे ऊंचे और ऊंचे
सदा जिया,
जीना चाहा,
सहज सतही
सतह को और ऊँचा करती
धरातल को ऊंचा उठाती
केवल मैं ही नहीं
उस धरा-अंश के
आसपास के पलने वाले
छोटे बड़े प्राणी, या
सहभागी भी 
सहभागिता लेकर
चलें साथ सहज
और
जीना सीखें धरातल पर
जो वास्तविक है
जो सच होता है
सहना, बरतना सीख लें
जान जाएं, सहजता से,
बस इतना ही तो,
आज जीवन का सार
पूर्ण संतुष्टि, मैंने पा ली है।

-