Monday, August 16, 2010

निरुपण

लॉकरों में पड़ा धन
समान है गड़ा धन
काम आता नहीं किसी के
न अपने, न दूसरे के,
गरीब हैं लाखों इस देश के-
दे दो किसानों को,
सिपाहियों को,
शहीदों की विधवाओं को,
खुलवा दो रोजगार साधन
गड़ा धन, पड़ा धन
स्वार्थ भरा, अचल धन
कर दो चलायमान-
जी सके हर प्राण,
मिले बहुतों को साधन
जी उठें, खुशी से,
अभावग्रस्त, हजारों मन ।

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