Monday, August 16, 2010

उल्लास

जीवन में सितारे बहुत छिटके,
धुंधले, झिलमिलाते, टिमटिमाते,
मध्य उनके आकाश की परतें-
शून्य राह दिखातीं,
जिन पर चल कर जाने की चाह-
तारों की चमक पा जाने की राह-
जहां कुछ भी नहीं सिमटा,
सब कुछ हो बिखरा-
हवाएं भी सब हल्की,
जीवन की साध्य मूल पर,
साहस, कल्पना, शौर्य,
सब मिल बंधाती हैं आस-
तारे हैं शून्य गगन के बहुत-
हम तो धरती के,
हैं धरती के,
तारे विश्वास औ सफलता के
लाएंगे चुन चुन-
अपने आंगन में बिखराएंगे-
झिलमिलाती, टिमटिमाती,
जगमग करतीं
उल्लास की खुशियां।

4 comments:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

पिछली कविता के लगभग दो बरस बाद ये कविताएं पढने को मिली तो बहुत खुशी हुई. आपके विचार बहुत उच्च और निर्मल हैं और अभिव्यक्ति बहुत प्रभावशाली. आज देश की जो स्थितियां हैं उनमें इस तरह की रचनाओं की बहुत अधिक आवश्यकता है. आपको समाज के प्रति अपने दायित्व निर्वहन के पुण्य भाव से लेखन कर्म में रत होना चाहिए. और केवल कविताएं ही नहीं लिखें, लेख, कहानियां, व्यंग्य सब कुछ लिखें. आपमें अपार क्षमताएं हैं. उनका पूरा पूरा लाभ समाज और देश को दें.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपके आंगन में उल्लास और खुशियों के तारें चमकते रहें

pallav said...

बढ़िया लेखन....बधाई. आप निरंतर लिखेंगे तो सचमुच अच्छा होगा.

माधव हाड़ा said...

प्रभावशाली! सही मायने में इसको कविता कहते हैं।