Thursday, August 19, 2010

उपवन की मुस्कान

ये हरियाली,
गहराई तो -
घास के तिनके
पेड़ बन गए।
मिट्टी के कण कण गहराये,
पर्वत ऊंचे दीर्घ बन गये।
पत्ता-पत्ता सिमट गया,
हर डाली, हर शाखा में,
शाख- शाख मिल उठी जहाँ,
तो हरे- भरे सब वृक्ष बन गये।
वृक्षों की अवलि को देखो,
लघु, दीर्घ सब एक हो गईं,
एक बना जो रूप सुनहरा-
उपवन की मुस्कान हो गए।
मिल जुल कर देखें,
फिर कर लें-
कठिन, सहज सब काम हो गये।
एक बने, बल पाया हमने,
जुड़ गणतंत्र महान हो गये।
अब फिर समय गया हम पर
बलिदानों के बीज हो गये।
देश एकता रास हो जाये,
ऐसे यज्ञ अब धार्य हो गये।

1 comment:

माधव हाड़ा said...

अद्भुत और असाधारण कविताएं!