ये हरियाली,
गहराई तो -
घास के तिनके
पेड़ बन गए।
मिट्टी के कण कण गहराये,
पर्वत ऊंचे दीर्घ बन गये।
पत्ता-पत्ता सिमट गया,
हर डाली, हर शाखा में,
शाख- शाख मिल उठी जहाँ,
तो हरे- भरे सब वृक्ष बन गये।
वृक्षों की अवलि को देखो,
लघु, दीर्घ सब एक हो गईं,
एक बना जो रूप सुनहरा-
उपवन की मुस्कान हो गए।
मिल जुल कर देखें,
फिर कर लें-
कठिन, सहज सब काम हो गये।
एक बने, बल पाया हमने,
जुड़ गणतंत्र महान हो गये।
अब फिर समय आ गया हम पर
बलिदानों के बीज हो गये।
देश एकता रास हो जाये,
ऐसे यज्ञ अब धार्य हो गये।
1 comment:
अद्भुत और असाधारण कविताएं!
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